RAVAN का चरित्र हम वाल्मीकीय रामायण से प्रस्तुत करते हैं। पाठकगण समझ जायेंगे कि रावण कितना "चरित्रवान" था:-
(क) रावण यहां वहां से कई स्त्रियां हर लाया था:-रावन सन्यासी का वेश त्याग कर कहता है|
बह्वीनामुत्तमस्त्रीणामाहृतानामितस्ततः ।
सर्वासामेव भद्रं ते ममाग्रमहिषी भव ॥ २८ ॥ (अरण्यकांड सर्ग ४७/२८)
"मैं यहां वहां से अनेकों सुंदर स्त्रियों को हरण करके ले आया।उन सबमें तू मेरी पटरानी बन,इसमें तेरी भलाई है।।२८।।"
परस्त्रीगमन राक्षसों का धर्म है:- रावण ने सीता से कहा: -
स्वधर्मो रक्षसां भीरु सर्वथैव न संशयः ।
गमनं वा परस्त्रीणां हरणं संप्रमथ्य वा ॥ ५ ॥- ( सुंदरकांड सर्ग २०/५)
"
"भीरू! तू ये मत समझ कि मैंने तुझे हरकर कोई अधर्म किया है।दूसरों की स्त्रियों का हरण व परस्त्रियों से भोग करना राक्षसों का धर्म है-इसमें संदेह नहीं ।।५।।"
सर्वासामेव भद्रं ते ममाग्रमहिषी भव ॥ २८ ॥ (अरण्यकांड सर्ग ४७/२८)
"मैं यहां वहां से अनेकों सुंदर स्त्रियों को हरण करके ले आया।उन सबमें तू मेरी पटरानी बन,इसमें तेरी भलाई है।।२८।।"
परस्त्रीगमन राक्षसों का धर्म है:- रावण ने सीता से कहा: -
स्वधर्मो रक्षसां भीरु सर्वथैव न संशयः ।
गमनं वा परस्त्रीणां हरणं संप्रमथ्य वा ॥ ५ ॥- ( सुंदरकांड सर्ग २०/५)
"
"भीरू! तू ये मत समझ कि मैंने तुझे हरकर कोई अधर्म किया है।दूसरों की स्त्रियों का हरण व परस्त्रियों से भोग करना राक्षसों का धर्म है-इसमें संदेह नहीं ।।५।।"
लीजिये महाराज! रावण ने खुद स्वीकार किया है कि वो इधर उधर से परस्त्रियों को हरकर उनसे संभोग करता है। अब हम आपकी मानें या रावण की? निश्चित ही रावण की गवाही अधिक माननीय होगी,
क्योंकि ये तो उसका अपना अनुभव है और आप केवल वकालत कर रहो हैं।वाल्मीकीय रामायण से इस विषय पर सैकड़ों प्रमाण दिये जा सकते हैं।
मंदोदरि का रावणवध के बाद विलाप करते हुये रोती है तथा कहती है।
धर्मव्यवस्थाभेत्तारं मायास्रष्टारमाहवे ।
देवासुरनृकन्यानां आहर्तारं ततस्ततः ।। ५३ ।। - ( युद्धकांड सर्ग १११)
अर्थात
"आप(रावण) धर्मकी व्यवस्था को तोड़ने वाले,संग्राम में माया रचने वाले थे। देवता,असुर व मनुष्यों की कन्याओं यहां वहां से हरण करके लाते थे।।५३।।"
लीजिये, अब रावण की पटरानी,बीवी की गवाही भी आ गई कि रावण परस्त्रीगामी था।
यही नहीं, रावण ने वेदवती,पुंजिकास्थिलिका नामक अप्सरा और बहुत सी नारियों से बलात्कारपूर्वक भोग किया था।
बहुत सी नारियों से बलात्कारपूर्वक भोग किया था।
१:-युद्धकांड १३.१३-१५:- रावण ने पुंजिकास्थिलिका नामक अप्सरा से शक्ति पूर्वक संभोग किया तब ब्रह्मा जी ने उसको शाप दिया कि किसी स्त्री से यदि वो बलपूर्वक संभोग करेगा तो उसके सर के टुकड़े हो जायेंगे ।
ऐसे कई प्रमाण रामायण से दर्ज किये जा सकते हैं जहां रावण परस्त्रीगामी ,बलात्कारी और लंपट सिद्ध होता है। जब हद पार हो गई, तब ब्रह्माजी ने उसे शाप दिया कि यदि वो फिर आगे से किसी स्त्री से बलात्कार करेगा, तो उसका सर फोड़ देंगे।अंततः जब उसने देवी सीता को चुराया, तो उसकी सीताजी पर भी गंदी दृष्टि थी। पर जीते जी उनसे व्यभिचार न कर सका और उन पतिव्रता देवी के पातिव्रत्य तेज से जलकर खाक हो गया! देखिये, मंदोदरि के शब्दों में:-
ऐश्वर्यस्य विनाशाय देहस्य स्वजनस्य च ।
सीतां सर्वानवद्याङ्गीं अरण्ये विजने शुभाम् ।
आनयित्वा तु तां दीनां छद्मनाऽऽत्मस्वदूषणम् ।। २२ ।।
अप्राप्य तं चैव कामं मैथिलीसंगमे कृतम् ।
पतिव्रतायास्तपसा नूनं दग्धोऽसि मे प्रभो ।। २३ ।। ( युद्धकांड सर्ग १११)
अर्थात
"प्राणनाथ! सर्वांगसुंदरी शुभलक्षणा सीता को वन में आप उनके निवास से , छल द्वारा हरकर ले आये,ये आपके लिये बहुत बड़े कलंक की बात थी।
मैथिली से संभोग करने की जो आपके मन में कामना थी,वो आप पूरी न कर सके उलट उस पतिव्रता देवी की तपस्या में भस्म हो गये अवश्य ऐसा ही घटा है।।२२-२३।"
ऐसे व्यभिचारी, व्यसनी, बलात्कारी, शराबी, अधर्मी व्यक्ति रावण को अपना महान पूर्वज बताने वालों को यह प्रमाण पढ़कर तत्काल सत्य को स्वीकार कर लेना चाहिए। ऐसे दुष्ट का नाश करने वाले मर्यादापुरुषोत्तम श्री राम ही हमारे लिए वर्णीय और आदरणीय हो सकते है।
मैथिली से संभोग करने की जो आपके मन में कामना थी,वो आप पूरी न कर सके उलट उस पतिव्रता देवी की तपस्या में भस्म हो गये अवश्य ऐसा ही घटा है।।२२-२३।"
ऐसे व्यभिचारी, व्यसनी, बलात्कारी, शराबी, अधर्मी व्यक्ति रावण को अपना महान पूर्वज बताने वालों को यह प्रमाण पढ़कर तत्काल सत्य को स्वीकार कर लेना चाहिए। ऐसे दुष्ट का नाश करने वाले मर्यादापुरुषोत्तम श्री राम ही हमारे लिए वर्णीय और आदरणीय हो सकते है।

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