कुछ अधर्मी पापी और नास्तिकों ने नियोग के ऊपर प्रश्न किए हैं। सनातन धर्म पर अनर्गल आरोप लगाए हैं। तो उन्हीं प्रश्नों का उत्तर दिया जाएगा। शास्त्र और ऋषियों के अनुसार बताने जा रहे हैं कि नियोग क्या है?
विवाह
तृ॒तीयो॑ अ॒ग्निष्टे॒ पति॑स्तु॒रीय॑स्ते मनुष्य॒जाः ।।
[rigveda 10.85.40]
पदार्थ - (ते) हे कन्या ! तेरा (प्रथमः) प्रथम पालक (सोमः-विविदे) सोमधर्मयुक्त रजोधर्म तुझे प्राप्त होता है (उत्तरः) इसके उत्तर पालक (गन्धर्वः) रश्मि धर्मवाला सूर्य प्राप्त करता है (तृतीयः) तीसरा पालक (अग्निः) यज्ञाग्नि प्राप्त करता है (तुरीयः) चतुर्थ पालक (ते मनुष्यजाः) तेरा मनुष्यजाति में उत्पन्न पति है ॥४०॥
भावार्थ - कन्या की प्रथम स्थिति रजोधर्म की ओर चलती है, फिर उत्तेजना धाराएँ उत्पन्न होती हैं, फिर विवाहसंस्कार में आग्नेय धर्म वाली उत्साहप्रवृत्तियाँ जागती हैं, पश्चात् मनुष्यसम्पर्क प्राप्त हो जाता है, जो अन्तिम कृतकार्य की स्थिति है ॥४०॥
इ॒हैव स्तं॒ मा वि यौ॑ष्टं॒ विश्व॒मायु॒र्व्य॑श्नुतम् ।
क्रीळ॑न्तौ पु॒त्रैर्नप्तृ॑भि॒र्मोद॑मानौ॒ स्वे गृ॒हे ॥
[rigveda 10.85.42]
पदार्थ -(इह-एव स्तम्) हे वधू और वर ! तुम दोनों इस गृहाश्रम में स्थिर रहो (मा वियौष्टम्) मत वियुक्त होओ (विश्वम्-आयुः) समग्र आयु को प्राप्त करो-भोगो (पुत्रैः-नप्तृभिः क्रीडन्तौ) पुत्र-पुत्रियों पौत्र-दौहित्रों के साथ खेलते हुए (स्वे गृहे मोदमानौ) अपने घर में हर्ष करते हुए रहो ॥४२॥
भावार्थ - गृहस्थ को परस्पर गृहस्थ का पालन करते हुए परस्पर मेल से रहते हुए पुत्र-पौत्रादि आदि के साथ आनन्द करते हुए अपने घर में रहना चहिये ॥४२॥
प्रतिज्ञा
भावार्थ - विवाह में विद्वानों के बीच वस्त्र का गठबन्धन करके वधू और वर दृढ़ प्रतिज्ञा करें कि पत्नी पतिव्रता और पति पत्नीव्रत होकर गृहस्थ आश्रम को प्रीतिपूर्वक निबाहें ॥१॥
| Atharvaved, 7.39.1 |
वेदों में एकल पत्नी का विधान है, यहाँ पत्नी उपदेश कर रही है उसकी आज्ञा से पुरुष दूसरा विवाह भी कर सकता है| अन्यथा
Satyarth prakash, sammulas 4 |
इसके बाद स्त्री या पुरुष के पास तिन option है:-
- स्त्री या पुरुष ब्रह्मचर्य का पालन करे
- यदि संतान की इच्छा हो तो बच्चे को गोद ले ले
- ब्रह्मचर्य न रख सके तो नियोग कर संतान उत्पति कर ले(या विवाह भी कर सकती है|)
कुह॑ स्विद्दो॒षा कुह॒ वस्तो॑र॒श्विना॒ कुहा॑भिपि॒त्वं क॑रत॒: कुहो॑षतुः ।
को वां॑ शयु॒त्रा वि॒धवे॑व दे॒वरं॒ मर्यं॒ न योषा॑ कृणुते स॒धस्थ॒ आ ॥
[Rig 10.40.2]
पदार्थ -(अश्विना) हे विवाहित स्त्री-पुरुषों ! तुम दोनों (कुह दोषा) किस स्थान में रात्रि को (कुह वस्तोः) और कहाँ दिन में (कुह-अभिपित्वं करतः) कहाँ भोजनादि की अभिप्राप्ति करते हो (कुह-ऊषतुः) कहाँ वास करते हो (वां शयुत्रा कः) तुम दोनों का शयनाश्रम कौन सा है (विधवा-इव देवरम्) जैसे विधवा और देवर का नियोग हो जाने पर व्यवहार होता है (मर्यं न योषा सधस्थं कृणुते) जैसे वर के प्रति वधू सहस्थान बनाती है, ऐसे विवाहित स्त्री-पुरुषों ! तुम्हारा व्यवहार हो ॥२॥
भावार्थ - गृहस्थ स्त्री-पुरुषों को सदा प्रेम के साथ रहना चाहिए। जैसे विवाहकाल में वर-वधू स्नेह करते थे, वह स्नेह बना रहे। कदाचित् मृत्यु आदि कारणवश दोनों का वियोग हो जाये, तो सन्तान की इच्छा होने पर नियोग से सन्तानलाभ कर सकते हैं ॥२॥
देवराद्वा सपिण्डाद्वा स्त्रिया सम्यनियुक्तया।
प्रजेप्सिताधिगन्तव्या सन्तानस्य परिक्षये॥
[Manusmriti 5.59]
(सन्तानस्य परिक्षये) पति से सन्तान न होने पर, सन्तानरहित अवस्था में पति की मृत्यु होने पर अथवा किसी भी कारण से सन्तान का अभाव होने पर (सम्यक् नियुक्तया स्त्रिया) परिजनों के द्वारा शास्त्रोक्त विधि से [परिवार और समाज में विवाहवत् प्रसिद्धिपूर्वक] नियोग के लिए नियुक्त स्त्री को (देवरात्वा सपिंडात् वा) देवर-वर्णस्थ या अपने से उत्तम वर्णस्थ पुरुष से अथवा पति की छ: पीढ़ियों में पति के छोटे या बड़े भाई से (ईप्सिता प्रजा अधिगन्तव्या) इच्छित सन्तान प्राप्त कर लेनी चाहिए
देवर शब्द का अर्थ :- मनुस्मृति या वैदिक साहित्य में देवर शब्द का प्रचलित–'पति का छोटा भाई' अर्थ न होकर विस्तृत अर्थ है।
निरुक्त में देवर' शब्द की निरुक्ति निम्न दी है:-
"देवरः कस्मात् द्वितीयो वर उच्यते॥" (३.१५)
अर्थात्- "देवर उसको कहते हैं कि जो विधवा का दूसरा पति होता है, चाहे छोटा भाई वा बड़ा भाई अथवा अपने वर्ण वा अपने से उत्तम वर्ण वाला हो। जिससे नियोग करे, उसी का नाम देवर है।" आजकल यह केवल पति के छोटे भाई के अर्थ में रूढ़ हो गया है। इस रूढ़ि का कारण कदाचित् यह है कि स्त्री के विधवा हो जाने पर अधिकतर मत-पति के छोटे भाई से ही उसका सम्बन्ध कर दिया जाता है। यह नियोगविधि का ही एक परिवर्तित रूप है। वर्तमान की इस परम्परा से प्राचीन काल में नियोगप्रथा के अस्तित्व के संकेत मिलते हैं।
अन्य प्रमाण
जब विचित्रवीर्य का निधन हो जाता है, तब हस्तिनापुर पर संकट छा जाता है। क्योंकि हस्तिनापुर का कोई उत्तराधिकारी नहीं था। तब माता सत्यवती भीष्म से कहती है कि तुम अम्बिका और अम्बालिका से नियोग विधि द्वारा संतान उत्पन्न करो। तब भीष्म अपनी प्रतिज्ञा बताते हुए मना कर देते है ।
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| Mahabharat, Adi parva, sambhav parva, adhyay 104 |
| Mahabharat,Adi parva, sambhav parv, adhyay 103 |
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| Mahabharat, Adi parva sambhav parva, adhyay 105 |
उसके बाद व्यास जी के द्वारा नियोग विधि से अंबिका से धृतराष्ट्र अंबालिका से पाण्डु और दासी से विदुर की उत्पत्ति होती है। [mahabharat, Adi parva, sambhav parva, adhyay 105]
| Mahabharat, Adi parva, sambhav parv, adhyay 121 |
| Devi bhagavat, sakandh 6, adhyay 24 |
| Gadud puran, achar kand, part 72, p151 |
| Mahabharat, shanti parva, adhyay 34 |
नियोग का विधान आपतिकाल के लिए है इसके बिना यदि नियोग विधि पूर्वक भी सम्भोग करे तो पापी कहे गए है-
पतितौ भवतो गत्वा नियुक्तावप्यनापदि॥
अर्थ:- (ज्येष्ठः यवीयसः भार्याम्) बड़ा भाई छोटे भाई की स्त्री के साथ और (यवीयान्+अग्रज-स्त्रियम्) छोटा भाई बड़े भाई की स्त्री के साथ (अनापदि) आपत्तिकाल [=सन्तानाभाव] के बिना (नियुक्तौ+ अपि गत्वा) नियोग-विधिपूर्वक भी यदि संभोग करें तो वे (पतितौ भवतः) पतित अपराधी माने गये हैं॥
नियोग से पुत्र प्राप्ति के बाद शारीर सम्बन्ध अपराध है:-
[manusmriti 9.62]
[manusmriti 9.62]
ऋषि दयानंद ने भी नियोग को आपातकालीन और एक्च्छिक कहा है:- "जो जितेंद्रिये रह सके तो विवाह और नियोग न भी करे तो ठीक है|" [satyarth prakash, S4]
प्रश्न- यह नियोग की बात व्यभिचार के समान दीखती है।
उत्तर- जैसे विना विवाहितों का व्यभिचार होता है, वैसे विना नियुक्तों का व्यभिचार कहाता है। इससे यह सिद्ध हुआ कि जैसा नियम से विवाह होने पर व्यभिचार नहीं कहाता, तो नियमपूर्वक नियोग होने से व्यभिचार न कहावेगा। जैसे दूसरे की लड़की और दूसरे के लड़के का शास्त्रोक्त विधि से विवाहपूर्वक समागम में व्यभिचार वा पाप, लज्जा नहीं होता, वैसे ही वेदशास्त्रोक्त नियोग में व्यभिचार, पाप, लज्जा न मानना चाहिये।
प्रश्न- है तो ठीक, परन्तु यह वेश्या के सदृश कर्म दीखता है।
उत्तर- नहीं, क्योंकि वेश्या के समागम में किसी निश्चित पुरुष वा कोई नियम नहीं है और नियोग में विवाह के समान नियम हैं। जैसे दूसरे को लड़की देने, दूसरे के साथ समागम करने में विवाहपूर्वक लज्जा नहीं होती, वैसे ही नियोग में भी न होनी चाहिये। क्या जो व्यभिचारी पुरुष वा स्त्री होती हैं, वह विवाह होने पर भी कुकर्म से बचते हैं?
IVF (In vitro fertilization) के बारे में तो सुना ही होगा | अपने पति के वीर्य से या किसी दुसरे पुरुष के वीर्य से संतान उत्पन्न किये जा रहे है|
| satyarth prakash, S4 |
प्रश्न:- क्या 10 पुरुष के साथ नियोग उचित है?
"Divorced women shall keep themselves waiting for three periods, and it is not permissible for them to conceal what Allah has created in their wombs, if they believe in Allah and in the Last Day. Their husbands are best entitled to take them back in the meantime, if they want a settlement. Women have rights similar to what they owe in recognized manner though for men there is a step above them. Allah is Mighty, Wise."
एसी बहुत सारी हदिशे है| नियोग हलाला की क्या समानता है, कुछ भी नहीं, नियोग जहा आपातकालीन और एच्छिक हैअर्थात पूरी तरीके से स्त्री निर्णय के आधीन है, हलाला आवश्यक है| यहाँ मुस्लिम महिला कुछ नहीं कर सकती उनके पास option ही नहीं है| नियोग और हलाला बिलकुल ही दो विपरीत बाते है इनको एक द्रिष्टि से देखना मुर्खता ही है|




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