शंकराचार्य जो अद्वैत वेदांत के प्रवर्तक माने जाते हैं।उनका जन्म एक ब्राह्मण परिवार में कालाडी में हुआ था, जो अभी वर्तमान में केरल में है। पिता का नाम शिव गुरु और माता का नाम आर्यम्बा था।
शिव गुरु और आर्यम्बा के विवाह के बहुत वर्ष पश्चात तक उन्हें किसी पुत्र की प्राप्ति नहीं हो रही थी। वे इस बात से चिंतित थे कि विवाह उपरान्त बहुत वर्ष बीत गए लेकिन कोई संतान नहीं हो रही है। पत्नी आर्यम्बा के कहने पर कि शिव ही हमारी सभी इच्छा को पूर्ण कर सकते हैं। शिव गुरु पुत्र प्राप्ति हेतु शिव भक्ति करने लगे। एक दिन शिव स्वयं शिव गुरु के सपने में आए और कहा कि तुम क्या चाहते हो |
शिव गुरु ने पुत्र की इच्छा व्यक्त की तब शिव ने कहा तुम्हे कैसा पुत्र चाहिए? सर्वज्ञ, गुणी और अल्पायु वाला पुत्र या गुणहीन पूर्ण आयु वाला पुत्र, शिव गुरु ने इसमें से पहले का चुनाव किया। (shankar digvijay sarg-2)
शंकर का जन्म हुआ | जब वो मात्र 3 वर्ष का था उसके पिता की मृत्यु हो गई (shankar digvijay sarg-4)
(shankar digvijay sarg 5)
शंकर बहुत ज्यादा ज्ञानी तो था ही। वो विवाह उपरान्त भी अपने ज्ञान का प्रदर्शन कर सकता था और अपने दर्शन को पूरे भारत में फैला सकता था जैसे कि पूर्व में ऋषियों ने किया है। गौतम ऋषि या जो मंडन मिश्र थे उनकी पत्नी थी। (many examples)
शंकर को यह बात किसने सिखाई हो सकता है उसके गुरुओं ने सिखाई। कुछ भी हो सकता है उस समय।शंकर ने घर छोड़ने के लिए, सन्यासी बनने के लिए एक स्वांग रचा।
जब वो नदी में नहाने के लिए गया तो एक मगरमच्छ ने उसके पैर को अपने जबड़े में पकड़ लिया। उसकी माँ रो रही थी, चिल्ला रही थी और कह रही थी कि एक मेरा पति था, वो भी चला गया। मेरा एक ही सहारा है मेरा पुत्र शंकर। यदि ये भी नहीं रहा तो मैं जीवित रहकर क्या करूंगी? तो इस बात से पता चलता है की शंकर अपनी माँ का एकमात्र सहारा था। तब शंकर कहता है कि यदि आप चाहती हैं कि ये मगरमच्छ मेरा पैर छोड़ दें और मैं जीवित रहूं। तो आप मुझे सन्यासी बनने की आज्ञा दीजिए।अब माँ तो माँ होती है। वो हमेशा अपने पुत्र का हित ही चाहती है। वह जानती थी कि मैं यदि इसे सन्यासी बनने को कह दूंगी तो ये घर को छोड़ के चला जाएगा और मैं अकेली रह जाउंगी। फिर भी अपने पुत्र के जीवन की रक्षा के लिए वो उसे आज्ञा दे देती है|
Ubhaya-Bbarati's Challenge
(SANKARA-DIG-VIJAYA·: CANTO 9 )
जब मंडन मिश्र के साथ शंकराचार्य का शास्त्रार्थ हुआ तो मंडन मिश्र पराजित हुए।और उस समय न्यायाधीश उभया भारती ही थी। उन्ही ने यह निर्णय सुनाया उसके बाद उभया भारती शंकराचार्य को चुनौती देती है। शास्त्रार्थ के लिए वह कहती हैं कि अभी हमारे पति की पूर्ण पराजय नहीं हुई है।
जब तक मैं उभया भारती, उनकी पत्नी अपराजित है। क्योंकि मैं उनकी अर्धांगिनी हूँ तो वो पराजित कैसे हो सकते है ?
उभया भारती की चुनौती सुनकर शंकर कहता है कि आप तो एक स्त्री है।और एक स्त्री और पुरुष के बीच में शास्त्रार्थ उचित नहीं हो सकता है। इस पर उभया भारती जवाब देते हुए कहती हैं कि जो भी आपके दर्शन को चुनौती देगा, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वो स्त्री है या पुरुष हैं।आपका कर्तव्य है कि आप उस को पराजित करे, आप उसके साथ शास्त्रार्थ करें और अपने मत को सिद्ध करे | उसने पुराने उदाहरण जैसे यज्ञवल्क्य का गार्गी के साथ शास्त्रार्थ का उदाहरण दिया। यह सुनकर शंकर का मुँह बंद हो गया। और वो शास्त्रार्थ के लिए तैयार हो गया
p-111
यहाँ पर माधवाचार्य ने ऐसे दिखाया है कि जैसे। उभया भारती शंकराचार्य को हरा ही नहीं सकती थी। यानी शंकराचार्य ने उभया भारती के हर प्रश्न का उत्तर दे दिया, जो उन्होंने वेद वेदांत पर पूछे थे।लेकिन उभया भारती को देखकर ऐसा लगता नहीं है कि वो शंकराचार्य से डिबेट में हार सकती है।
दूसरी बात यह है कि शंकरदिग्विजय शंकराचार्य के काल में नहीं लिखा गया है। यह 1200 AD के बाद लिखा गया है। और लिखने वाले माधवाचार्य खुद श्रिंगेरी मठ में जगत गुरु के पद पर प्रतिष्ठित थे।तो स्पष्ट है कि वो शंकरदिग्विजय में शंकराचार्य की हार को क्यों लिखेंगे? उनकी हर हार को वो जीत में परिवर्तित करने का हरसंभव प्रयास करेंगे और जो उन्होंने यहाँ पर किया है।
माधवाचार्य यहाँ पर कहते हैं कि जब शंकर से वेद, वेदांत पर प्रश्न किया गया तो उसने सारे प्रश्नों के उत्तर दे दिए। पर जब उभया भारती ने कामशास्त्र के विषय में प्रश्न किया तो उनसे उत्तर देते नहीं बना।और उन्होंने १ महीने का समय मांग लिया | अब युद्ध में विराम नहीं होता है। युद्ध में या तो एक पराजित होता है या एक कोई विजेता होता है, उसके बाद ही युद्धविराम होता है। इसी प्रकार से शास्त्रार्थ भी होता है, उसमें विराम नहीं होता। जब तक।कोई विजेता या पराजित घोषित न हो जाए। क्योंकि यहाँ पर शंकराचार्य। खुद समय मांग लेते हैं। इससे वो पराजित सिद्ध होते है| और उभया भारती विजेता सिद्ध होती है|
तो जब शंकर उभया भारती से पराजित हो गया तो सबने शंकर की प्रतिष्ठा को बचाने के लिए उभया भारती को माँ सरस्वती कहने लगे की वो माता सरस्वती की अवतार है।और शंकर को तो पहले महादेव का अवतार बना ही चूके हैं। माधवाचार्य ने खुद शंकरदिग्विजय में मंडन मिश्र को ब्रह्मा का अवतार और उभया भारती को सरस्वती का अवतार कहा है।
अब ये कहो तो कहते है की शंकराचार्य तो माता सरस्वती से हारे इसमें भी उनका गौरव ही है कोई अपमान नहीं | केवल शंकराचार्य को अपराजित सिद्ध करने के लिए ये सब काल्पनिक कहानी बनाई है| शंकराचार्य जिससे भी हारे या शास्त्रार्थ किया सबको अवतार बना दिया
शंकर को कामशास्त्र का ज्ञान कैसे हुआ -
{ubhaya bharati vs adi shankar}
शंकर से जब लव sex अर्थात कामशास्त्र के विषय में प्रश्न किया गया। तो वो कुछ न बोले, शांत रहे। यहाँ पर शंकरदिग्विजय में लिखा हुआ है कि यह सन्यासी के धर्म के खिलाफ़ था अर्थात कामशास्त्र के विषय में बात करना सन्यासी के धर्म के विरुद्ध बात है।और यहाँ पर फिर शंकर उनसे एक महीने का समय मांग लेते हैं। (shankardigvijay, sarga-9, p112)
यहाँ पर एक महीने के समय मांगने के पश्चात शंकर कहता है कि मैं तुमसे फिर मिलूंगा और तुम्हारे सारे प्रश्नों के उत्तर दूंगा। तो अब प्रश्न यह है कि जब यह सन्यासी के धर्म के विरुद्ध बात थी। तो पुनः मिलना क्यों है? क्योंकि ये यदि अब धर्मविरुद्ध बात है तो वो बाद में भी धर्मविरुद्ध बाद ही होगा। तो इससे यह साफ पता चलता है कि आदिशंकर को जीस समय यह प्रश्न किया गया, उस समय उनको इन प्रश्नो का उत्तर पता नहीं था। उन्होंने पराजित होने के भय से एक महीने का समय मांगा
{Who was the winner in this debate? You decide it yourself.}
शंकर जब डिबेट में एक महीने का समय मांग लेता है उसके बाद वो अपने शिष्यों के साथ योग विद्या द्वारा वायुमार्ग से हवा में उड़कर जा रहा होता है। तभी वो एक मरे हुए राजा को देखता है | राजा जब शिकार खेलने जंगल में जाता है वही उसकी मृत्यु हो जाती है|
जब शंकर को यह ज्ञात होता है कि राजा की 100 से अधिक सुंदर पत्नियां हैं। तब उसके मन में ये विचार आता है, की सेक्स के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए इस राजा से उत्तम शरीर नहीं हो सकता है| {shankardigvijay, sarga-9, p112,113}
उसके बाद शंकर एक गुफा में जाते हैं और अपने शरीर की आत्मा को मृत राजा के शरीर में योग विद्या द्वारा प्रवेश कराते हैं,और अपने शिष्यों से कहते हैं कि मेरा जो यह शरीर है उसकी तुम रक्षा करो, इस गुफा की रक्षा करो। {shankardigvijay, sarga-9, p115}
अब मृत राजा के शरीर में शंकर की आत्मा प्रवेश कर चुकी थी और वो जीवित हो चुका था। उसके बाद राजा ने राज्य प्रशासन को मंत्रियों की कैबिनेट को सौंप दिया।और राजा ने अपने आप को सुंदर महिलाओं के साथ निजी कक्ष में बंद कर लिया। ये महिलाएं बहुत आकर्षक थी।
महिलाओं के साथ लगातार सभी प्रकार के कामुक भोगों में खुद को व्यस्त रखा(The king tried different types of sex positions with those women.)
राजा सोने के प्याले में शराब पी रहे थे।उन महिलाओं के चेहरे पर kiss कर रहे थे मधुर वचन बोल रहे थे।उन महिलाओं के नंगे शरीर को कस के गले से लगा कर रोमांच भर जाता था और राजा सब कुछ भूल जाते थे।
राजा इन महिलाओं को अच्छी प्रकार से संतुष्ट करने का प्रयास कर रहे थे। उनके सम्भोग के विभिन्न क्रियाकलाप का अध्ययन कर रहे थे। और उन्होंने सभी केन्द्रों और कामुक संतुष्टि के भावों को बारीकी से देखा था।{shankardigvijay sarg-10, p118}
उसके बाद शंकर पुनः उभया भारती से मिलते हैं। उभया भारती कहती हैं कि आप उस समय हम को हरा नहीं पाए थे।
और यहाँ पर माधवाचार्य ने सबको बेवकूफ बनाते हुए कह दिया है कि उभया भारती सरस्वती की अवतार थीं, शिव की बहन थी और ब्रह्मा की पत्नी थी और वो किसी मिशन पर आई थी।😝😝
माता की मृत्यु👇👇👇
जब शंकर के माता की मृत्यु हुई तो वो अपने जन्म स्थान पर वापस वापस पहुंचा।उनके संबंधित जो उनके आस पड़ोस के लोग थे, उन्होंने उनकी कोई सहायता नहीं की।
उन्होंने उनकी अर्थी उठाने से मना कर दिया। अपने घर से आग नहीं दी।शव को जलाने के लिए ईंधन नहीं दिया।और उन पर हंसते रहे बाद में शंकर ने खुद अपने कमंडल नीचे रखा।और सूखी लकड़ी बटोरी और उससे अपने दाहिने हाथ से मथ कर उससे अग्नि उत्पन्न की और माता का दाह संस्कार किया। परिजनों से बार बार सहायता मांगने पर भी।उनके संबंधियों का उनकी सहायता न करना यह दिखाता है कि वह किसी बात पर तो उससे क्रुद्ध थे।
तब शंकर ने क्रोध में आकर उन सभी ब्राह्मणों को शार्प दिया की ये ब्राह्मण आज से वेद से बहिष्कृत हो जाएंगे, शूद्र समान हो जाएंगे तथा भिखारी इनके घरों से भीख नहीं लेंगे। तो उस समय पर भिखारी जिनके घरों से भीख नहीं लेते थे, उन्हें घोर निंदनीय समझा जाता था।
मेरे विचार से अपने सम्बंधियों के द्वारा अपमानित और तिरस्कृत होने के बाद और माता पिता के चले जाने के बाद शंकराचार्य निराशावादी बन गए। उन्होंने जगन मिथ्या ब्रह्म सत्यम का नारा दिया
अर्थात ब्रह्म ही सत्य है, जगत झूठा है। उन्हें जगत कभी रास नहीं आया। इसीलिए उन्होंने जगत को ही मिथ्या कह दिया।
शुद्र और स्त्री 👇👇👇
स्त्री वेद नहीं पढ़ सकती (brihadarnayak upnishad 6.4.17 comentry by Adi shankaracharya)
द्वारं किमेकं नरकस्य नारी ॥ ३॥
प्रश्न :- नरक का प्रधान द्वार क्या है ?
उत्तर:- नारी
मोहयत्येव सुरेव का स्त्री ।६
प्रश्न :- मदिरा की तरह क्या चीज निश्चय ही मोहित कर देती है ?
उत्तर:- नारी ही |
विश्वासपात्रं न किमस्ति नारी ॥ १९॥
प्रश्न :- विश्वास के योग्य कौन नहीं है ?
उत्तर:- नारी |
किं तद्विषं भाति सुधोपमं स्त्री ||२९||
प्रश्न :- वह कौन सा विष है जो अमृत सा जान पड़ता है ?
उत्तर:- नारी |
विज्ञान्महाविज्ञतमोऽस्ति को वा
नार्या पिशाच्या न च वञ्चितो यः ||१५||
प्रश्न :- समझदारों में सबसे अच्छा समझदार कौन है ?
उत्तर:- जो स्त्रीरूप पिशाचिनी से नहीं ठगा गया है |
किमुत्तमं सच्चरितं यदस्ति ।
त्याज्यं सुखं किं स्त्रियमेव सम्यग् ||२०||
प्रश्न :- कौन सा सुख तज देना चाहिए ?
उत्तर:- सब प्रकार से स्त्री सुख ही |
"प्रश्नोतरी BY Adishankaracharya ,,,,, आदि शंकर स्त्रियों के बारे में क्या विचार रखते थे वो आप ऊपर पढ़ सकते है|"
शुद्र वेद नहीं पढ सकते (bhagavat gita 18.41 comentry by Adi shankaracharya)
शंकराचार्य वर्ण जन्मानुसार मानते है इसीलिए कोई ये नहीं कह सकता की शुद्र तो अज्ञानी होता है इसी लिए नहीं पढ़ सकता | शंकराचार्य अनुसार वर्ण परिवर्तन संभव नहीं
brahmsutra 1.3.38 (comentry by adi shankracharya)शूद्र को वेद पढ़ने का अधिकार नहीं है। शूद्र को वेद को सुनना, वेद का अध्ययन करना और उसके अर्थ जानने का अधिकार नहीं है। शूद्र के समीप वेद नहीं पढ़ना चाहिए। शूद्र श्मशान के भांति होता है शूद्र वेद के अध्ययन योग्य नहीं है ।यदि शुद्र वेद मंत्र का उच्चारण करें तो उसकी जीवा काट देनी चाहिए।और वेद कंठस्थ करें तो शरीर का भेदन छेदन करना चाहिए।
जो शूद्र वेद सुनने का प्रयास करें।उसके दोनों कानों में सीसा और लाह पिघलाकर डाल देना चाहिए।
रास्ते में कुत्तों से घिरा एक चांडाल मिला। शंकर ने उसे 'दूर हटो' 'दूर हटो' कहा क्योंकि वह अछूत और अदर्शनीय था। इस पर उसने शंकर से कहा कि तुममें और मुझ में क्या अंतर है, जो तुम अपने अंदर छूत और मुझसे अछूत समझते हो? जब सब एक ही ब्रह्म है, और ब्रह्म के सिवा कुछ है ही नहीं।जब सब अद्वैत है। तब तेरे मेरे में भेदभाव कैसा? (शंकर दिग्विजय, सर्ग ६)
इसके बाद शंकर ने कह तो दिया कि मैं अब चांडाल और ब्राह्मण में भेद नहीं करूँगा, निम्न में और उच्च में भेद नहीं करूँगा। लेकिन उनके जो उपनिषदों पर भाष्य है, उससे ऐसा प्रतीत नहीं होता है, कि उनके मन में ये समाप्त हो गया क्योंकि उन्होंने इसको बरकरार रखा है।
ब्रह्मसूत्र के भाष्य में शंकर ने कहा है कि शूद्र को न वेद सुनने का अधिकार है और न ही वेद पढ़ने का अधिकार है न उसके अर्थ समझने का अधिकार है,और न उसके अनुसार अनुष्ठान यज्ञादि करने का अधिकार है।जो ब्राह्मण शूद्र को वेद का उपदेश करता है,वो नर्क में जाकर डूबता है। अतः शूद्र शिक्षा, झूठा भोजन और यज्ञादि का उपदेश नहीं करना चाहिए। (ब्रह्मसूत्र १.३.३८ /शंकर भाष्य )
अब बात ये है कि स्त्री को वेद पढ़ने का अधिकार नहीं तो जिन उभया भारती से उन्होंने शास्त्रार्थ किया। क्या उन्होंने कभी वेद नहीं पढ़े थे? साधारण सी बात है, वह वेद और शास्त्र की ज्ञानी थी। कहा तो यहाँ तक जाता है कि मंडन मिश्र के घर का तोता भी वेद मंत्र बोलता था।
वितंडावाद 👇👇👇
आस्तिको को तो यह कहकर अपनी बात मनवा लेते थे कि शास्त्रों में लिखा हुआ है लेकिन जब शंकराचार्य का पाला, नास्तिक और बुद्धों से पड़ा तब वो वितंडावाद की पद्धति को अपनाते थे।
जगत भी सत्य है brahmsutra 2.1.16 comentry by adishankracharya
ऐसे तो वो कहते थे कि ब्रह्म ही सत्य है, जगत मिथ्या है।लेकिन जब उनका पाला बौद्ध हो और नास्तिकों से पड़ा क्योंकि वो उनके शास्त्र की बात तो मानेंगे नहीं? तो उन्हें कहना आरंभ कर दिया की जैसे ब्रह्मं तीनों कालों में होने से सत्य है। जगत भी उसी ब्रह्म से उत्पन है उसी प्रकार जगत भी तीनों कालों में रहता है इसलिए वो भी सत्य ही है।
प्रत्यक्ष प्रमाण और शास्त्र विद्या अविद्या(झूठ) के सामान है| (brahmsutra upotpat)
brahmasutra 2.1.11 comentry by adi shankracharya
शंकराचार्य के पास जब दूसरे विद्वानों के तर्को का जवाब नहीं होता था तो उन्होंने ये कहना शुरू कर दिया कि तर्क आधारहीन होते हैं।अर्थ है कि यदि कोई व्यक्ति तर्क देता है तो कोई दूसरा उसको अपनी बुद्धि कौशल से काट देता है। कोई तीसरा उससे ज्यादा विद्वान व्यक्ति उसको अपने बुद्धि कौशल से काट देता है। इस प्रकार तर्क झूठा है। तर्क का आश्रय नहीं लेना चाहिए।
यज्ञो में बलि का समर्थन 👇👇👇
शास्त्रों में हिंसा धर्म है।वैसे हिंसा करना गलत है, लेकिन यज्ञों में दी गई बलि हिंसा नहीं है। वो अपवादस्वरूप हैं| brahmsutra 3.1.25 (comentry by adi shankracharya)
अब शंकराचार्य कैसे थे इसका निर्णय आप स्वय कीजिये
क्या हमें उनका सम्मान नहीं करना चाहिए?
तो उत्तर है अवश्य करना चाहिए।उनमे हो सकता है कुछ बुराइयाँ हों लेकिन बौद्धों और जैनों के आतंक से वैदिकधर्म की रक्षा करना कोई छोटा काम नहीं है।और उन्होंने वैदिक धर्म को बचाया है और इसके लिए हर एक हिंदू उनका आजीवन आभारी रहेगा।
शंकर की मृत्यु की घटना को महान बताने के लिए यह कहा जाता है, कि उन्होंने अपना कार्य समाप्त करके समाधि लगाकर स्वेच्छा से शरीर का त्याग कर दिया।
लेकिन यह बात तथ्यों द्वारा प्रमाणित नहीं होती। शंकरदिग्विजय सर्ग 16 के अनुसार शंकर के गुदा द्वार में एक भयानक फोड़ा(भगंदर) हो गया था जिससे खून टपकते रहने से उनकी धोती भीग जाया करती थी। और उन्हें बहुत पीड़ा हुआ करती थी। इससे शंकर बहुत कमजोर हो गए थे। उन्होंने वैद्यो से काफी चिकित्सा करवाई परंतु रोग ठीक नहीं हुआ।
(shankar digvijay sarg 5)
Ubhaya-Bbarati's Challenge
(SANKARA-DIG-VIJAYA·: CANTO 9 )
जब मंडन मिश्र के साथ शंकराचार्य का शास्त्रार्थ हुआ तो मंडन मिश्र पराजित हुए।और उस समय न्यायाधीश उभया भारती ही थी। उन्ही ने यह निर्णय सुनाया उसके बाद उभया भारती शंकराचार्य को चुनौती देती है। शास्त्रार्थ के लिए वह कहती हैं कि अभी हमारे पति की पूर्ण पराजय नहीं हुई है।
जब तक मैं उभया भारती, उनकी पत्नी अपराजित है। क्योंकि मैं उनकी अर्धांगिनी हूँ तो वो पराजित कैसे हो सकते है ?
उभया भारती की चुनौती सुनकर शंकर कहता है कि आप तो एक स्त्री है।और एक स्त्री और पुरुष के बीच में शास्त्रार्थ उचित नहीं हो सकता है। इस पर उभया भारती जवाब देते हुए कहती हैं कि जो भी आपके दर्शन को चुनौती देगा, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वो स्त्री है या पुरुष हैं।आपका कर्तव्य है कि आप उस को पराजित करे, आप उसके साथ शास्त्रार्थ करें और अपने मत को सिद्ध करे | उसने पुराने उदाहरण जैसे यज्ञवल्क्य का गार्गी के साथ शास्त्रार्थ का उदाहरण दिया। यह सुनकर शंकर का मुँह बंद हो गया। और वो शास्त्रार्थ के लिए तैयार हो गया
p-111
यहाँ पर माधवाचार्य ने ऐसे दिखाया है कि जैसे। उभया भारती शंकराचार्य को हरा ही नहीं सकती थी। यानी शंकराचार्य ने उभया भारती के हर प्रश्न का उत्तर दे दिया, जो उन्होंने वेद वेदांत पर पूछे थे।लेकिन उभया भारती को देखकर ऐसा लगता नहीं है कि वो शंकराचार्य से डिबेट में हार सकती है।
दूसरी बात यह है कि शंकरदिग्विजय शंकराचार्य के काल में नहीं लिखा गया है। यह 1200 AD के बाद लिखा गया है। और लिखने वाले माधवाचार्य खुद श्रिंगेरी मठ में जगत गुरु के पद पर प्रतिष्ठित थे।तो स्पष्ट है कि वो शंकरदिग्विजय में शंकराचार्य की हार को क्यों लिखेंगे? उनकी हर हार को वो जीत में परिवर्तित करने का हरसंभव प्रयास करेंगे और जो उन्होंने यहाँ पर किया है।
माधवाचार्य यहाँ पर कहते हैं कि जब शंकर से वेद, वेदांत पर प्रश्न किया गया तो उसने सारे प्रश्नों के उत्तर दे दिए। पर जब उभया भारती ने कामशास्त्र के विषय में प्रश्न किया तो उनसे उत्तर देते नहीं बना।और उन्होंने १ महीने का समय मांग लिया | अब युद्ध में विराम नहीं होता है। युद्ध में या तो एक पराजित होता है या एक कोई विजेता होता है, उसके बाद ही युद्धविराम होता है। इसी प्रकार से शास्त्रार्थ भी होता है, उसमें विराम नहीं होता। जब तक।कोई विजेता या पराजित घोषित न हो जाए। क्योंकि यहाँ पर शंकराचार्य। खुद समय मांग लेते हैं। इससे वो पराजित सिद्ध होते है| और उभया भारती विजेता सिद्ध होती है|
तो जब शंकर उभया भारती से पराजित हो गया तो सबने शंकर की प्रतिष्ठा को बचाने के लिए उभया भारती को माँ सरस्वती कहने लगे की वो माता सरस्वती की अवतार है।और शंकर को तो पहले महादेव का अवतार बना ही चूके हैं। माधवाचार्य ने खुद शंकरदिग्विजय में मंडन मिश्र को ब्रह्मा का अवतार और उभया भारती को सरस्वती का अवतार कहा है।
अब ये कहो तो कहते है की शंकराचार्य तो माता सरस्वती से हारे इसमें भी उनका गौरव ही है कोई अपमान नहीं | केवल शंकराचार्य को अपराजित सिद्ध करने के लिए ये सब काल्पनिक कहानी बनाई है| शंकराचार्य जिससे भी हारे या शास्त्रार्थ किया सबको अवतार बना दिया
शंकर को कामशास्त्र का ज्ञान कैसे हुआ -
{ubhaya bharati vs adi shankar}
शंकर से जब लव sex अर्थात कामशास्त्र के विषय में प्रश्न किया गया। तो वो कुछ न बोले, शांत रहे। यहाँ पर शंकरदिग्विजय में लिखा हुआ है कि यह सन्यासी के धर्म के खिलाफ़ था अर्थात कामशास्त्र के विषय में बात करना सन्यासी के धर्म के विरुद्ध बात है।और यहाँ पर फिर शंकर उनसे एक महीने का समय मांग लेते हैं। (shankardigvijay, sarga-9, p112)
यहाँ पर एक महीने के समय मांगने के पश्चात शंकर कहता है कि मैं तुमसे फिर मिलूंगा और तुम्हारे सारे प्रश्नों के उत्तर दूंगा। तो अब प्रश्न यह है कि जब यह सन्यासी के धर्म के विरुद्ध बात थी। तो पुनः मिलना क्यों है? क्योंकि ये यदि अब धर्मविरुद्ध बात है तो वो बाद में भी धर्मविरुद्ध बाद ही होगा। तो इससे यह साफ पता चलता है कि आदिशंकर को जीस समय यह प्रश्न किया गया, उस समय उनको इन प्रश्नो का उत्तर पता नहीं था। उन्होंने पराजित होने के भय से एक महीने का समय मांगा
{Who was the winner in this debate? You decide it yourself.}
शंकर जब डिबेट में एक महीने का समय मांग लेता है उसके बाद वो अपने शिष्यों के साथ योग विद्या द्वारा वायुमार्ग से हवा में उड़कर जा रहा होता है। तभी वो एक मरे हुए राजा को देखता है | राजा जब शिकार खेलने जंगल में जाता है वही उसकी मृत्यु हो जाती है|
जब शंकर को यह ज्ञात होता है कि राजा की 100 से अधिक सुंदर पत्नियां हैं। तब उसके मन में ये विचार आता है, की सेक्स के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए इस राजा से उत्तम शरीर नहीं हो सकता है| {shankardigvijay, sarga-9, p112,113}
उसके बाद शंकर एक गुफा में जाते हैं और अपने शरीर की आत्मा को मृत राजा के शरीर में योग विद्या द्वारा प्रवेश कराते हैं,और अपने शिष्यों से कहते हैं कि मेरा जो यह शरीर है उसकी तुम रक्षा करो, इस गुफा की रक्षा करो। {shankardigvijay, sarga-9, p115}
अब मृत राजा के शरीर में शंकर की आत्मा प्रवेश कर चुकी थी और वो जीवित हो चुका था। उसके बाद राजा ने राज्य प्रशासन को मंत्रियों की कैबिनेट को सौंप दिया।और राजा ने अपने आप को सुंदर महिलाओं के साथ निजी कक्ष में बंद कर लिया। ये महिलाएं बहुत आकर्षक थी।
महिलाओं के साथ लगातार सभी प्रकार के कामुक भोगों में खुद को व्यस्त रखा(The king tried different types of sex positions with those women.)
राजा सोने के प्याले में शराब पी रहे थे।उन महिलाओं के चेहरे पर kiss कर रहे थे मधुर वचन बोल रहे थे।उन महिलाओं के नंगे शरीर को कस के गले से लगा कर रोमांच भर जाता था और राजा सब कुछ भूल जाते थे।
राजा इन महिलाओं को अच्छी प्रकार से संतुष्ट करने का प्रयास कर रहे थे। उनके सम्भोग के विभिन्न क्रियाकलाप का अध्ययन कर रहे थे। और उन्होंने सभी केन्द्रों और कामुक संतुष्टि के भावों को बारीकी से देखा था।{shankardigvijay sarg-10, p118}
उसके बाद शंकर पुनः उभया भारती से मिलते हैं। उभया भारती कहती हैं कि आप उस समय हम को हरा नहीं पाए थे।
और यहाँ पर माधवाचार्य ने सबको बेवकूफ बनाते हुए कह दिया है कि उभया भारती सरस्वती की अवतार थीं, शिव की बहन थी और ब्रह्मा की पत्नी थी और वो किसी मिशन पर आई थी।😝😝
माता की मृत्यु👇👇👇
जब शंकर के माता की मृत्यु हुई तो वो अपने जन्म स्थान पर वापस वापस पहुंचा।उनके संबंधित जो उनके आस पड़ोस के लोग थे, उन्होंने उनकी कोई सहायता नहीं की।
उन्होंने उनकी अर्थी उठाने से मना कर दिया। अपने घर से आग नहीं दी।शव को जलाने के लिए ईंधन नहीं दिया।और उन पर हंसते रहे बाद में शंकर ने खुद अपने कमंडल नीचे रखा।और सूखी लकड़ी बटोरी और उससे अपने दाहिने हाथ से मथ कर उससे अग्नि उत्पन्न की और माता का दाह संस्कार किया। परिजनों से बार बार सहायता मांगने पर भी।उनके संबंधियों का उनकी सहायता न करना यह दिखाता है कि वह किसी बात पर तो उससे क्रुद्ध थे।
तब शंकर ने क्रोध में आकर उन सभी ब्राह्मणों को शार्प दिया की ये ब्राह्मण आज से वेद से बहिष्कृत हो जाएंगे, शूद्र समान हो जाएंगे तथा भिखारी इनके घरों से भीख नहीं लेंगे। तो उस समय पर भिखारी जिनके घरों से भीख नहीं लेते थे, उन्हें घोर निंदनीय समझा जाता था।
मेरे विचार से अपने सम्बंधियों के द्वारा अपमानित और तिरस्कृत होने के बाद और माता पिता के चले जाने के बाद शंकराचार्य निराशावादी बन गए। उन्होंने जगन मिथ्या ब्रह्म सत्यम का नारा दिया
अर्थात ब्रह्म ही सत्य है, जगत झूठा है। उन्हें जगत कभी रास नहीं आया। इसीलिए उन्होंने जगत को ही मिथ्या कह दिया।
शुद्र और स्त्री 👇👇👇
स्त्री वेद नहीं पढ़ सकती (brihadarnayak upnishad 6.4.17 comentry by Adi shankaracharya)
शुद्र वेद नहीं पढ सकते (bhagavat gita 18.41 comentry by Adi shankaracharya)
शंकराचार्य वर्ण जन्मानुसार मानते है इसीलिए कोई ये नहीं कह सकता की शुद्र तो अज्ञानी होता है इसी लिए नहीं पढ़ सकता | शंकराचार्य अनुसार वर्ण परिवर्तन संभव नहीं
brahmsutra 1.3.38 (comentry by adi shankracharya)शूद्र को वेद पढ़ने का अधिकार नहीं है। शूद्र को वेद को सुनना, वेद का अध्ययन करना और उसके अर्थ जानने का अधिकार नहीं है। शूद्र के समीप वेद नहीं पढ़ना चाहिए। शूद्र श्मशान के भांति होता है शूद्र वेद के अध्ययन योग्य नहीं है ।यदि शुद्र वेद मंत्र का उच्चारण करें तो उसकी जीवा काट देनी चाहिए।और वेद कंठस्थ करें तो शरीर का भेदन छेदन करना चाहिए।
जो शूद्र वेद सुनने का प्रयास करें।उसके दोनों कानों में सीसा और लाह पिघलाकर डाल देना चाहिए।
रास्ते में कुत्तों से घिरा एक चांडाल मिला। शंकर ने उसे 'दूर हटो' 'दूर हटो' कहा क्योंकि वह अछूत और अदर्शनीय था। इस पर उसने शंकर से कहा कि तुममें और मुझ में क्या अंतर है, जो तुम अपने अंदर छूत और मुझसे अछूत समझते हो? जब सब एक ही ब्रह्म है, और ब्रह्म के सिवा कुछ है ही नहीं।जब सब अद्वैत है। तब तेरे मेरे में भेदभाव कैसा? (शंकर दिग्विजय, सर्ग ६)
इसके बाद शंकर ने कह तो दिया कि मैं अब चांडाल और ब्राह्मण में भेद नहीं करूँगा, निम्न में और उच्च में भेद नहीं करूँगा। लेकिन उनके जो उपनिषदों पर भाष्य है, उससे ऐसा प्रतीत नहीं होता है, कि उनके मन में ये समाप्त हो गया क्योंकि उन्होंने इसको बरकरार रखा है।
ब्रह्मसूत्र के भाष्य में शंकर ने कहा है कि शूद्र को न वेद सुनने का अधिकार है और न ही वेद पढ़ने का अधिकार है न उसके अर्थ समझने का अधिकार है,और न उसके अनुसार अनुष्ठान यज्ञादि करने का अधिकार है।जो ब्राह्मण शूद्र को वेद का उपदेश करता है,वो नर्क में जाकर डूबता है। अतः शूद्र शिक्षा, झूठा भोजन और यज्ञादि का उपदेश नहीं करना चाहिए। (ब्रह्मसूत्र १.३.३८ /शंकर भाष्य )
अब बात ये है कि स्त्री को वेद पढ़ने का अधिकार नहीं तो जिन उभया भारती से उन्होंने शास्त्रार्थ किया। क्या उन्होंने कभी वेद नहीं पढ़े थे? साधारण सी बात है, वह वेद और शास्त्र की ज्ञानी थी। कहा तो यहाँ तक जाता है कि मंडन मिश्र के घर का तोता भी वेद मंत्र बोलता था।
वितंडावाद 👇👇👇
आस्तिको को तो यह कहकर अपनी बात मनवा लेते थे कि शास्त्रों में लिखा हुआ है लेकिन जब शंकराचार्य का पाला, नास्तिक और बुद्धों से पड़ा तब वो वितंडावाद की पद्धति को अपनाते थे।
जगत भी सत्य है brahmsutra 2.1.16 comentry by adishankracharya
ऐसे तो वो कहते थे कि ब्रह्म ही सत्य है, जगत मिथ्या है।लेकिन जब उनका पाला बौद्ध हो और नास्तिकों से पड़ा क्योंकि वो उनके शास्त्र की बात तो मानेंगे नहीं? तो उन्हें कहना आरंभ कर दिया की जैसे ब्रह्मं तीनों कालों में होने से सत्य है। जगत भी उसी ब्रह्म से उत्पन है उसी प्रकार जगत भी तीनों कालों में रहता है इसलिए वो भी सत्य ही है।
प्रत्यक्ष प्रमाण और शास्त्र विद्या अविद्या(झूठ) के सामान है| (brahmsutra upotpat)
यज्ञो में बलि का समर्थन 👇👇👇
शास्त्रों में हिंसा धर्म है।वैसे हिंसा करना गलत है, लेकिन यज्ञों में दी गई बलि हिंसा नहीं है। वो अपवादस्वरूप हैं| brahmsutra 3.1.25 (comentry by adi shankracharya)
अब शंकराचार्य कैसे थे इसका निर्णय आप स्वय कीजिये
शंकर की मृत्यु की घटना को महान बताने के लिए यह कहा जाता है, कि उन्होंने अपना कार्य समाप्त करके समाधि लगाकर स्वेच्छा से शरीर का त्याग कर दिया।
लेकिन यह बात तथ्यों द्वारा प्रमाणित नहीं होती। शंकरदिग्विजय सर्ग 16 के अनुसार शंकर के गुदा द्वार में एक भयानक फोड़ा(भगंदर) हो गया था जिससे खून टपकते रहने से उनकी धोती भीग जाया करती थी। और उन्हें बहुत पीड़ा हुआ करती थी। इससे शंकर बहुत कमजोर हो गए थे। उन्होंने वैद्यो से काफी चिकित्सा करवाई परंतु रोग ठीक नहीं हुआ।
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