उत्तर- राज आर्य नाम के व्यक्ति ने शंका न पूछकर मनुस्मृति के एक पाठान्तर को लेकर वीडियो डाला है, जिसमें मनुस्मृति में आये ब्रह्मावर्त के स्थान पर आर्यावर्त पाठ के पक्ष में कथन किया है। उस वीडियो में अपना पक्ष रखने के लिए पाठकों के साथ छल का व्यवहार किया है। उसके निम्न प्रमाण हैं--
१. उसमें दावा किया है कि इस वीडियो का उद्देश्य आर्य विद्वानों का अपमान करना नहीं है। परन्तु उसमें अपने शब्दों को विद्वानों की भाषा बताकर दुर्वचनपूर्ण और असभ्य शब्दों का प्रयोग किया है । ऐसा संकेत मिलता है कि यह व्यक्ति स्वामी वेदानन्द, पं०भगवद्दत्त,पं० युधिष्ठिर मीमांसक, डा०सुरेन्द्र कुमार,स्वामी विद्यानन्द आदि के पाठों को अशुद्ध साबित कर स्वयं को अधिक विद्वान् स्थापित करने का इच्छुक है। इस व्यक्ति को सभ्य भाषा सीखने की जरूरत है। छलयुक्त, असभ्य और अपूर्ण उत्तर से विद्वत्ता का सम्मान नहीं प्राप्त किया जा सकता है।
२.मनुस्मृति २/१७ श्लोक में उक्त आर्य विद्वानों और परम्परागत सभी संस्कृत के नौ भाष्यकारों ने सरस्वती और दृषद्वती नदियों के मध्य स्थित देश की सीमा के लिए "ब्रह्मावर्तं प्रचक्षते" पाठ माना है। उक्त सज्जन ने "आर्यावर्तं प्रचक्षते" पाठान्तर को सही कहा है। परन्तु यह अधूरा कथन करके पाठकों को भ्रमित किया है। आगे २/२२ श्लोक में मनु ने पूर्व और पश्चिम समुद्रों के मध्यवर्ती तथा विंध्य एवं हिमालय के मध्यवर्ती सम्पूर्ण देश को आर्यावर्त कहा है --"आर्यावर्तं प्रचक्षते"। इस सज्जन ने मनुस्मृति के दोनों श्लोकों में परस्पर विरोध और सन्देह उत्पन्न कर दिया। छल यह है कि इस सज्जन ने २/२२दूसरे श्लोक में वर्णित आर्यावर्त की सीमाएं भिन्न क्यों हैं, इसका कारण नहीं बताया है। उसकी चर्चा ही नहीं की है। क्योंकि उसका समाधान इस सज्जन के पास नहीं है।
३. यदि २/१७ में भी ब्रह्मावर्त के स्थान पर आर्यावर्त पाठ मानेंगे और २/२२ में भी आर्यावर्त पाठ मानेंगे, तो दोनों श्लोकों में वर्णित अलग-अलग सीमाओं में से आर्यावर्त की दो तरह की सीमा हो जायेंगी। कौनसी सीमा को सही मानेंगे? वीडियो निर्माता ने इस आपत्ति का समाधान छुआ तक नहीं। अधूरा कथन करके पाठकों को भ्रम में रखा है।
३.इस सज्जन ने जम्मू की एक पांडुलिपि को आधार मानकर अपना पक्ष रखा है। जबकि पांडुलिपियों में तो समय-समय में हस्तलेखकों द्वारा मनमाने ढंग से स्वयं किये अनेक पाठान्तर मिलते हैं।जब तक मूल ग्रन्थ के पूर्वापर प्रसंग और अविरोध से कोई कथन सिद्ध नहीं होता, तब तक पांडुलिपि की ग्राह्य प्रामाणिकता नहीं बनती। पांडुलिपि कितनी पुरानी या नयी है, यह भी नहीं बताया गया है। अतः इस सज्जन द्वारा प्रस्तुत प्रमाण मान्य नहीं हो सकता।
४. ऐसा ज्ञात होता है कि वीडियो डालने वाले सज्जन ने प्राचीन भारतीय इतिहास एवं भूगोल की परम्परा का अध्ययन नहीं किया । आर्यावर्त के राजाओं का पूर्व से पश्चिम तक के तथा उत्तर से दक्षिण तक के देशों पर साम्राज्य रहा है। ये सब देश आर्यावर्त के अन्तर्गत थे। इस कारण महाभारत एवं अन्य सभी ऐतिहासिक संस्कृत ग्रन्थों में मनुस्मृति २/२२ में वर्णित सीमा ही आर्यावर्त की सीमा वर्णित की है। अप्रामाणिक और अधूरा उत्तर भ्रमित करने वाला वाग्जाल कहलाता है।
आशा है वीडियो डालने वाले सज्जन अपने कथन में सुधार करेंगे। ~ आदरणीय डॉ. सुरेन्द्र कुमार जी
स्वामी वेदानन्द, पं०भगवद्दत्त,पं० युधिष्ठिर मीमांसक, डा०सुरेन्द्र कुमार,स्वामी विद्यानन्द ये सब मुर्ख है और ये आज कल के लडके विद्वान् है| यदि किसी manuscript में वहाँ(2.17) पर आर्यावर्त पाठ लिखा भी है, फिर भी गलत है कारण की सीमा का भेद हैं। दोनों की सीमाएं अलग है। मनुस्मृति की सबसे पुराने भाष्यकार Medhātithi’s भाष्य में भी ब्रह्मावर्त ही पाठ है| क्ल्लुक भट्ट की टिका में भी यही है| manuscript में अंकित हर बात सही नहीं होती manuscript में तो ये भी अंकित है की बुद्ध पिछवाड़े से पैदा हुए थे मान लोगे क्या? थोड़ी बुद्धि लगानी पड़ती है, जो छपडी लोगो में नहीं होती|
| kulluk bhatt tika |

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