वेदों में नारी का सर्वोच्य सम्मान

 


हिन्दू धर्म का मूलाधार वेद हैं और वेद नारी को सर्वोच्च सम्मान प्रदान करते हैं। विश्व का अन्य कोई भी सम्प्रदाय, कोई भी अन्य दर्शन और आजकल के आधुनिक स्त्रीवादी भी इस उच्चता तक पहुँच नहीं पाए हैं।





नारी समाज की आधारशिला है। यदि किसी समाज को विनष्ट करना हो तो पहले वहां की स्त्रियों की शिक्षा, उनके मान-सम्मान, उनके रुतबे को समाप्त करना होगा।





इसके विपरीत यदि किसी श्रेष्ठ समाज का निर्माण करना हो तो वहां स्त्रियों को सर्वोच्च सम्मान देना होगा और साथ ही उन्हें ज्ञान, गौरव और नेतृत्व से युक्त करना होगा।



हमारे राष्ट्र और समाज के दुर्भाग्य की शुरुआत तब से हुई जब से हमने स्त्रियों को 'वस्तु' मानना शुरू किया - चाहे वासनापूर्ति की वस्तु या फिर दासी के रूप में काम-काज करने की वस्तु।




वैदिक युग में जो स्त्रियों को सम्मान व अधिकार प्राप्त था यदि भारतवर्ष की स्त्रीया उन सभी अधिकारों को प्राप्त कर धर्म पूर्वक प्रयोग नहीं करती तब तक आर्यावर्त का उद्धार होना संभव नहीं है|






यदि आप देश में रहने वाली दुर्गा लक्ष्मी सरस्वती के अधिकारों की रक्षा नहीं कर सकते फिर किसी भी पाषाण की मूर्ति को पूजना व्यर्थ है|



यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:। यत्रेतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राउफला: क्रिया: (manu)
(यत्र नार्य: पूज्यन्ते) जिस कुल में नारियों की पूजा अर्थात्‌ आदर-सत्कार होता है (तु) निश्चय ही
(तत्र) उस कुल में (देवता: रमन्ते) दिव्य सन्तान, दिव्य गुण, दिव्यभोग प्राप्त होते हैं, (यत्र एता:+तु न
पूज्यन्ते) जहाँ इनका आदर-सत्कार नहीं होता अर्थात्‌ अनादर और उत्पीड़न होता है (तत्र) उस कुल में
(सर्वा: क्रिया: अफलाः: ) गृहस्थ-सम्बन्धी सब क्रियाएँ निष्फल रहती हैं अर्थात्‌ स्त्रियों की प्रसन्‍नता और सम्मान के बिना गृहस्थ में गुणी सनन्‍्तान, सुख- शान्ति, सफलता, उन्नति नहीं हो पाती ॥ ५६ ॥*


तदा चैतत्‌ कुलं नास्ति यदा शोचन्ति जामय: ।। ६ ।। जामीशप्तानि गेहानि निकृत्तानीव कृत्यया ।
नैव भान्ति न वर्धन्ते श्रिया हीनानि पार्थिव ।। ७ ॥।(mahabharat, anushasan parva)
जब कुलकी बहू-बेटियाँ दुःख मिलनेके कारण शोकमग्न होती हैं तब उस कुलका नाश हो जाता है। वे खिन्न होकर जिन घरोंको शाप दे देती हैं, वे कृत्याके द्वारा नष्ट हुए के समान उजाड़ हो जाते हैं। पृथ्वीनाथ! वे श्रीहीन गृह न तो शोभा पाते हैं और न उनकी वृद्धि ही होती है ।। ६-७ ।।



स्त्रियो यत्र च पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता: ।। ५ || अपूजिताश्च यत्रैता: सर्वस्तित्राफला: क्रिया: ।(mahabharat, anushasan parva)
जहाँ स्त्रियोंका आदर-सत्कार होता है वहाँ देवतालोग प्रसन्नतापूर्वक निवास करते हैं तथा जहाँ इनका अनादर होता है वहाँकी सारी क्रियाएँ निष्फल हो जाती हैं ।। ५३ ।। ओउम् #नवरात्री2022 #navratri #navratri2022

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ