कुछ लोग मुझ पर ऐसा आरोप लगा रहे है, की मैंने ये बोला की जो लोग मूर्ति पूजा करते है वो नरक को जायेंगे जबकि video में मैंने एसा कही नहीं बोला! मैंने ये बोला की जो लोग मूर्ति पूजा नहीं करते निराकार ईश्वर जो की वेदों में प्रतिपादित है, उसकी ध्यान उपासना करते है, वो ही मोक्ष को जा सकते है, ऐसा नहीं है, की सुनिश्चित है, परन्तु संभवना अवश्य है , किन्तु जो मूर्ति पूजक है उनका तो कभी मोक्ष हो ही नहीं सकता ये मेरा नहीं वेद तथा ऋषियों का सिद्धांत है| हां अधिक पुण्य कर्माशय हो तो स्वर्ग(उतम कुल) अवश्य प्राप्त कर सकता है|
नित्यमुक्तत्वम् ।सांख्य १.१६२
सांख्य दर्शन में ईश्वर को नित्य मुक्त बोला है तो भला ईश्वर प्रकृति के बंधन में क्यों बंधेगा वो तो मुक्त स्वभाव वाला है|
स हि सर्ववित् सर्वकर्ता ।सांख्य 3.56
अब जो सर्वत्र व्याप्त उसका एकदेशीय होना कैसे संभव है|
स पर्यगाच्छुक्रमकायमव्रणमस्नाविरँ शुद्धमपापविद्धम् ।
कविर्मनीषी परिभूः स्वयम्भूर्याथातथ्यतोर्थान्व्यदधाच्छाश्वतीभ्यः समाभ्यः ॥
भावार्थ - हे मनुष्यो! जो अनन्त शक्तियुक्त, अजन्मा, निरन्तर, सदा मुक्त, न्यायकारी, निर्मल, सर्वज्ञ, सबका साक्षी, नियन्ता, अनादिस्वरूप ब्रह्म कल्प के आरम्भ में जीवों को अपने कहे वेदों से शब्द, अर्थ और उनके सम्बन्ध को जनानेवाली विद्या का उपदेश न करे तो कोई विद्वान् न होवे और न धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के फलों के भोगने को समर्थ हो, इसलिये इसी ब्रह्म की सदैव उपासना करो॥८॥ yajurved 40.8
इसमें अकायम् शब्द आता है जिसका मतलब है काया रहित,
अन्धन्तमः प्र विशन्ति येसम्भूतिमुपासते ।
ततो भूयऽइव ते तमो यऽउ सम्भूत्याँ रताः ॥
भावार्थ - जो मनुष्य समस्त जड़जगत् के अनादि नित्य कारण को उपासना भाव से स्वीकार करते हैं, वे अविद्या को प्राप्त होकर क्लेश को प्राप्त होते और जो उस कारण से उत्पन्न स्थूल-सूक्ष्म कार्य्यकारणाख्य अनित्य संयोगजन्य कार्य्यजगत् को इष्ट उपास्य मानते हैं, वे गाढ़ अविद्या को पाकर अधिकतर क्लेश को प्राप्त होते हैं, इसलिये सच्चिदानन्दस्वरूप परमात्मा की ही सब सदा उपासना करें॥९॥ yajurved 40.9
जो मूर्ति पूजा करते है वो अविद्या के अन्धकार में गिर जाते है, तो ऐसे अविद्या से ग्रस्त लोगो का भला मोक्ष कैसे संभव हो सकता है|
न तस्य प्रतिमाऽअस्ति यस्य नाम महद्यशः।
हिरण्यगर्भऽइत्येष मा मा हिꣳसीदित्येषा यस्मान्न जातऽइत्येषः॥३॥
भावार्थ - हे मनुष्यो! जो कभी देहधारी नहीं होता, जिसका कुछ भी परिमाण सीमा का कारण नहीं है, जिसकी आज्ञा का पालन ही नामस्मरण है, जो उपासना किया हुआ अपने उपासकों पर अनुग्रह करता है, वेदों के अनेक स्थलों में जिसका महत्त्व कहा गया है, जो नहीं मरता, न विकृत होता, न नष्ट होता उसी की उपासना निरन्तर करो। जो इससे भिन्न की उपासना करोगे तो इस महान् पाप से युक्त हुए आप लोग दुःख-क्लेशों से नष्ट होओगे॥३॥ yajurved 32.3
वेदों में ईश्वर को निराकार, अजन्मा वर्णन करनेवाले “न तस्य प्रतिमास्ति।' यजुर्वेद 32.3, 'स जायत प्रथम:।' ऋग्वेद 4.1.11, 'सर्वेनिमेषा जज्ञिरे।!' यजुर्वेद 32.2,अन्तरिच्छन्ति।! ऋग्वेद 8.72.3, 'स पर्यगात्।' यजुर्वेद 40.8, “अपादिन्द्र:।' ऋग्वेद 8.69.11, “अजो न क्षाम्।' ऋग्वेद 1.67.3, “उत नोउहिर्जुध््यः।' ऋग्वेद 6.50.14, आदि हज़रों मन्त्र भरे पड़े हैं, किन्तु समस्त वेदों में एक मन्त्र भी ऐसा नहीं है जो ईश्वर को साकार अथवा जन्म धारण करनेवाला वर्णन करता हो। यदि हिम्मत हो तो निकालकर दिखाओ
अब जो लोग मूर्ति में ही फसे हुए है उनलोगों को ईश्वर के सत्य निराकार स्वरूप का ज्ञान कैसे होगा यदि ज्ञान ही नहीं हुआ तो साक्षात्कार तो बहुत दूर की बात है, ऐसे लोगो की मुक्ति कभी संभव नहीं
तत्र प्राप्तविवेकस्यानावृत्तिश्रुति: ।sankhya 1.83
सूत्रार्थ- प्रकृति और पुरुष के संबंध में विवेक प्राप्त कर लेने वाले व्यक्ति का पुनर्जन्म नहीं होता, ऐसा
श्रुति कहती है ।
ज्ञानान्मुक्ति: । sankhya 1.23
सूत्रार्थ- तत्वज्ञान से जीवात्मा का मोक्ष होता है।
ईश्वर को निराकार जानना जो की वेदों में लिखा है, ज्ञान है विपरीत जानना विपरीत ज्ञान अर्थात मिथ्या ज्ञान है| और मिथ्या ज्ञान से बंधन होता है इसकी पुष्टि में सांख्य दर्शन कहता है:-
बन्धो विपर्ययात् । sankhya 1.24
सूत्रार्थ- मिथ्याज्ञान से जीवात्मा का बंधन होता है।
और भी बहुत सारे प्रमाण है, इतने मात्र से सिद्ध होता है, की ईश्वर को साकार मान कर मूर्ति में उसकी पूजा करने वाले मिथ्या ज्ञानी है, इसलिए उनका कभी मोक्ष नहीं होगा
अन्निर्देवो द्विजातीनां मुनीनां हृदि दैवतम्।
प्रतिमा स्वल्पबुद्धीनां सर्वत्र समदर्शिन:।।चाणक्य निति ४.२१
ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य को द्विजाति कहा गया है, इनका देवता यज्ञ है। मुनियों का देवता उनके हृदय में निवास करता है। मंद बुद्धि वालों के लिए मूर्ति ही देवता होती है। जो व्यक्ति समदर्शी हैं, जिनकी समान दृष्टि है, वे परमेश्वर को सर्वत्र विद्यमान मानते हैं। ।।2।।
अब कहिये मंद बुद्धि मूर्ति पूजक का भी मोक्ष होने लगा फिर तो क्या ही कहने ! जो लोग मुझ पर आरोप लगा रहे है वो संभवतः मोक्ष को अपने घर का हलवा समझते है, इसीलिए सार्वजानिक रूप से उसका वितरण कर रहे है !
महर्षि दयानंद जी के विचार-
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| satyarth prakash samullas 11 |
महर्षि ने मूर्ति पूजा की इतनी कठोरता से निंदा इसीलिए की है क्योकि इससे हमारे देश का बहुत नुकसान हुआ, और मूर्ति पूजा से कोई लाभ नहीं ये सत्य ही है, फिर मोक्ष प्राप्त करना तो दूर की बात है, हां यदि पुण्य कर्माशय हो तो
स्वर्ग अवश्य प्राप्त कर सकता है पर मोक्ष नहीं|
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