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claim-1 महर्षि जैमिनी को उद्धृत करते हुए कहा ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका में मुक्त आत्मा इच्छा मात्र से दिव्य शरीर धारण कर सकती है और छोड़ सकती ये बात सत्यार्थ प्रकाश में कहीं नहीं है |
Refute- पहली बात ये इच्छा मात्र से शरीर धारण कर लेता है, तो वो भौतिक शरीर नहीं होता है। महर्षि दयानंद ने स्पष्ट लिखा है कि वह संकल्प शरीर होता है, अर्थात बिना शरीर के वह शरीर वाले कार्य को कर सकता है, अर्थात बिना कान के ही सुन सकता है। बिना आंख से ही देख सकता है। ऊपर ही कह दिया कि नेत्र आदि गोलक जो स्थूल होते है वो नहीं होते। जब वो सुनना चाहता है तो कान की शक्ति प्राप्त हो जाती है वास्तविक का नहीं होता।जब वो देखना चाहता है तो आंख की शक्ति प्राप्त जाती है वास्तविक आंख नहीं होता। आदि
आचार्य जी ने दूसरी बात ये बोलीं कि यह सत्यार्थ प्रकाश में नहीं लिखी। यह केवल झूठ है, बोलने से पहले एक बार और पढ़ लेना चाहिए था यह बात सत्यार्थ प्रकाश में लिखी है, जिसका प्रमाण आप नीचे देख सकते हैं | एक ही जर्मनी के सूत्रों को उन्होंने ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका तथा सत्यार्थ प्रकाश दोनों जगह उद्धृत किया।
| ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका |
| sp9 |
claim 2- जो व्यक्ति जीवनमुक्त होता है।वह योगी सूर्य चन्द्रमा आदि लोको में गति करता है , एसा महर्षि दयानंद ने अपने भाष्य में कहा है- (यजुर्वेद १७.14)
Refute- यह आचार्य जी की तरफ से दूसरा झूठ बोला गया जबकि वहाँ भावार्थ में विदेहमुक्ति अर्थात बिना देह के मुक्ति पाने वाली आत्मा। जो शारीर छोड़ चुका है, वैसी आत्मा ब्रह्म में रह सर्वत्र विचरण करती है। सूर्यादि लोकों में घूमती है, ऐसा कहा गया।
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